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Saturday, October 24, 2020

मुहम्मद(सल्ल०) ने तलवार कब उठाया !!!????

 










मोहम्मद (सल्ल०) ने तलवार कब उठाया!!????  

ये सवाल बहुत से गैर-मुस्लिम भाईयों के दिलों में होंगी और बहुत से मुसलमान भाईयों के भी| जैसा कि हम सभी जानते है कि इस्लाम पर तलवार से फैलने का आरोप लगता रहा है, मगर ये तलवार वाकई में इस्लाम के लिये मुहम्मद (सल्ल०) के द्वारा कब उठायी गई? आइये मैं आपको छठी शताब्दी के अरब में ले चलता हूं, जहां ज्यादातर समाज कबीलों में बँटा हुआ था, एक कबीला दूसरे कबीलें को फूटी आखों से भी नहीं देख पाता था, हमेशा लडाई-झगड़े मार-काट का बंदोबस्त रहता था, लोग एक-दूसरे के बदले की आग में जलते रहते थे और हमेशा फिराक में रहते थे, यहां तक की कोई बाप मरता तो वसीयत में बेटे को अपने दुश्मनों का नाम दे जाता था ताकि वो उसका बदला ले सके तभी उसके बेटे का जीवन सार्थक है वरना वो उसका बेटा नहीं, बच्चियों को पैदा होते ही जिंदा दफना दिया जाता था, लड़की का पिता होना अपमान समझा जाता था, एक ऐसे बर्बर समाज में एक बर्बर कबीलें में मुहम्मद सल्ल० का जन्म 571 ईसवी० में होता है, उनके जन्म से कुछ पहले ही उनके पिता स्वर्ग सिधार जाते हैं और जब वह 6 वर्ष के थे तब उनकी माता भी दुनिया छोड़ जाती है, उनका पालन पोषण एक दाई हलीमा और उनके चाचा द्वारा होता है, एक अनाथ होने का दर्द क्या होता है और उसके साथ कैसा सुलूक करना चाहिए इसका जिक्र मुहम्मद सल्ल० ने समय-समय पे किये है| वो उम्र भर व्यवस्था के न होने या सही से ध्यान न दिये जाने के कारण गरीबी से अनपढ ही रहे और चरवाहें का काम किया करते थे, उनका व्यवहार बहुत ही सरल था, उनका व्यवहार इतना सरल और मधुर था कि मक्का के लोग उन्हें 'सादिक(सरल सहज स्वभाव वाला)' कहकर पुकारते थे, लोग अपना सामान निश्र्चिंत होकर इनके पास छोड़ जाते थे, आपकी इमानदारी के मक्का में चर्चे थे, इनके इसी स्वभाव से प्रभावित होकर मां खदीजा ने अपने व्यापार के आयात और निर्यात की सारी जिम्मेदारी मुहम्मद सल्ल० को सौप दी थी और बाद में इतनी प्रभावित हुई की विवाह प्रस्ताव तक दे दिया और एक 25वर्षीय मुहम्मद सल्ल० की शादी एक 40 साल की विधवा व्यापारी से होती है| मुहम्मद सल्ल० को नबुवत की खबर या अहसास 509 इसवी में हुआ था, लगभग 40 वर्ष की उम्र में उनको फरिश्ता जिब्राईल(बाईबल में गैब्रियल) के द्वारा अल्लाह का संदेश प्राप्त होना शुरू हुआ, तबतक उनके जीवन में कोई एक भी घटना नहीं मिलती जहां उन्होंने किसी से हिंसा की हो या शस्त्र तलवार का प्रयोग किया हो | जब उनको पहला संदेश 'हिरा' की गुफा में मिला तब वो घबराकर घर आये और सबसे पहले अपनी पत्नी खदीजा को संदेश सुनाये, मुहम्मद सल्ल० का सारा शरीर कांप रहा था और पूरा शरीर बुखार से तप रहा था, खदीजा ये देखकर उनको कम्बल ओढातीं और  सारी बातें पूछती है, और उनकी बातों को सुनकर इमान लाती है, खदीजा मुहम्मद की पहली शिष्या और मुसलमान थी, इसके लिये मुहम्मद सल्ल० ने तलवार का इस्तेमाल नहीं किया था, धीरे-धीरे बहुत से लोग इमान लाए और मुसलमान हुए, उनके तर्कों उनके व्यवहार स्वभाव और इस्लाम की सादगी को सुनकर बहुत से लोग मुसलमान हुए, इस बीच बहुत से तार्किक लोग आते , सवाल करते और अल्लाह के संदेश को सुनकर मुसलमान हो जाते थे, और बहुत से लोग इनका मजाक भी उड़ाते थे, तर्क का जवाब मिलने पर भी कुव्यवहार करके मुहम्मद सल्ल० को अपमानित करते थे, उनको पागल कहते थे, इनमें से ही एक अबु-जहल भी था, अबु-जहल मक्का के उस समय के विद्वानों में से था, तरह-तरह के सवाल जवाब और चमत्कार के बावजूद अबु-जहल इमान नहीं लाता था और मुहम्मद सल्ल० को जादूगर कहता था, मक्का में मुहम्मद के बढते वर्चश्व और ख्याति से बहुत लोग परेशान थे, वो इनपर तरह-तरह की पाबंदी और अत्याचार करने लगे, लोगों में भ्रामक प्रचार करके मुहम्मद सल्ल० को बदनाम किया करते थे, जिससे लोग इनपे कुडा़-कर्कट फेकने लगे और इनपे थूकने लगे, वो जहां से भी गुजरते लोग उनसे दूर हो जाते, कूड़ा कर्कट फेंकते, गालियां देते, उसी दौरान एक बूढी औरत की घटना है, नबी एक गली से गुजरा करते थे जहा हर रोज एक बूढी औरत उनपे कचड़ा फेंकती थी पर एक दिन जब वो कचड़ा नहीं फेंकी तो उन्हें चिंता हुई, वो उस औरत का हाल पूछने उसके घर तक पहुचे तो देखा की वो औरत अपना सामान बाध रही है, पूछने पर पता चला की वो किसी मुहम्मद (सल्ल०) के डर से शहर छोड़कर जा रही है, कहने लगी कि एक जादूगर है जो हर किसी को उनके धर्म से पथभ्रष्ट कर रहा है और उसी के डर से वो मक्का छोड़ रही है, नबी ने उसकी गठरी को अपने कांधे पर उठाये और उसके साथ चल पड़े, जब उसका नया ठिकाना आ गया तो सामान उस बूढी औरत को देकर बिदा होने को हुए तो उस औरत ने कहा कि "तुम भले आदमी लगते हो, बेटा क्या नाम है तुम्हारा!!?  जब नबी ने कहा कि 'मैं वही मुहम्मद सल्ल० हूं तो बुढिया जार-जार रोने लगी, उसे पछतावा हुआ वो मुहम्मद सल्ल० को कितना गलत समझती थी और वो असल में क्या निकले, उसी वक़्त उन्होंने कलमा पढा और मुसलमान हो गयी| यहां भी मुहम्मद सल्ल० ने किसी तलवार का इस्तमाल नहीं किया, उनके चाचा ने सब कुछ जानकर भी इस्लाम कुबूल नहीं किये थे, तब भी उनका प्यार अपने चचा के लिये कम नहीं हुआ था, उनसे नफरत में आकर कुछ लोगो ने हमला करके नबी का सर फोड़ दिया था तब भी नबी तलवार नहीं उठाये थे, सब्र करते थे और अपने दुश्मनों के लिये दुआ करते थे, उमर जो उनको मारना चाहते थे और एक दिन तलवार लेकर निकल पडे थे वो भी एकदिन उनसे मिलकर इस्लाम कुबूल कर लेते है, वही उमर बाद में चलकर खलीफा हुए, बिलाल जो कि किसी के गुलाम थे उनको अपना पैसा देकर गुलामी की कैद से छुड़वाये, वो भी मुहम्मद से प्रभावित होकर मुसलमान हुए और पहले अजान देनेवाले बने, उन पर भी लोगों ने इस्लाम छोड़ने का दबाव डाला पत्थर के नीचे दबवाया फिर भी वो टस से मस नहीं हुए, नबी ने बिलाल को सब्र करने को क्या, ऐसे हालात में भी तलवार नहीं उठाए, शायद ही कोई इतना सब्रवाला हो आज हमारे मुस्लिम समाज में हो, आज थोड़ी-थोड़ी बातों में हम गाली गलौज मार-पीट पर उतर जाते है| मक्का के कुफ्फार आखिर में नबी को जान से मारने की साजिश रचने लगे, जिस रात को उनपर हमला होने वाला था उसी रात (622 ईसवी० में) को वो मक्का से हिजरत कर गये, मदीना में लोगो ने उनका स्वागत किया, अंसार लोगो ने इस्लाम कुबूल किया, उनकी इमानदारी के लोगों को इतना यकीन था कि यहूदी कबीले वाले अपना फैसला करने के लिये नबी को बुलाते थे, एक बार की बात है नबी अपने शिष्यों के साथ कहीं बैठे थे, एक लाश जाते देख उठ खड़े हुए तो एक शिष्य ने नबी को बताया की वो किसी यहूदी की लाश है, तो नबी ने कहा कि "क्या वो इंसान नहीं था"!?(किसी भी लाश या मृत को देखने पर इस्लाम में उसके सम्मान में खड़े ह़ने का नियम है), नबी ने कभी किसी के साथ ऊच नीच का व्यवहार नहीं किये| सन् 624 ईसवीं के रमजान के महीने की 17 तारीख को जब मक्का के कुफ्फारो ने मदीना पे अचानक हमला किया तब पहली बार जिहाद के लिये तलवार उठा, इस्लाम की हिफाजत के लिये नबी ने पहली बार तलवार उठाया, 100 लोगो की फौज ने 1000 लोगो से लड़कर इस्लाम की रक्षा की और फतह हाशिल किए, वो लड़ाई जंग-ए-बद्र के नाम से जानी जाती है, नबी तब भी हज को गये जब मक्का काफिरो के कब्जे में था, जब मक्का के मुसलमानों पर अत्याचार होने लगा और उनसे हज का अधिकार छीना गया तब मक्का पर आक्रमण हुआ और मक्का मुसलमानों के कब्जे में हुआ, उसके बाद जब-जब किसी रियासत सलतनत में मुसलमानों पर उनके धर्म को लेकर उनपर अत्याचार हुआ उनसे उनके अधिकार छीने गए तब-तब उस रियासत सलतनत पर हमला करके जिहाद करके सुलह करके मुसलमानों को हक दिया गया| तो नबी ने पहली मरतबा तलवार कब उठायें!!?? जब जुल्म की इंतहा हो गई, जब मुसलमानों पर अत्याचार हुआ उनसे उनका अधिकार छीना गया, फिर भी सुलह के प्रस्ताव को वो हमेशा तरजीह देते थे जंग पे, अल्लाह हम सबको को अपने नबी जैसा सब्र करने वाला और हिंसा के खिलाफ आवाज उठानेवाला बनाए आमीन... 

मुशाफिर तबरेज के द्वारा